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जड़ है मुझ में कुछ / वशिष्ठ कुमार झमन
Kavita Kosh से
मिट्टी से खून मिल गया
खून से आँसु
और दिखती एक धुँधली
काया सी है
उस पेड़ की जड़ें
कसा है जो बरसों से
दुनियादारी के लतपथ हाथों में
उसके झंझावात के
प्रतिरोध में
झुक गयी है डालियाँ
बदल गया है रंग पत्तों का
अब फल फूल भी
कुछ और ही लगते हैं
हवा कुछ और मिलती है
पानी कुछ और मिलता है
पर याद है
पर याद है मुझे आज भी
मैं कौन हूँ
कहाँ से आया हूँ
ज्ञात है मुझे
रहा है मुझमें कुछ
अविच्छिन्न हमेशा से
जड़ है मुझमें कुछ
आज भी