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जड़ : चार / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
धूड में
धूण घाल्यां
ऊंदै माथै पड़ी
रूंख नै
हर्यो राखण
ढूंढै जळ
आभै सूं पताळ
साव मा है
जड़ रूंख री
मा रै ई होवै
इत्ता जाळ-जंजाळ!