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जड़ : पांच / ओम पुरोहित ‘कागद’

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रूंख री तो है
है पण कठै
जड़ मिनख री
कुण जाणैं।

रूंख तो ऊभो है
आपरी जड़ां माथै
राखै आण
साम्भै पिछाण
गमै क्यूं
मिनख री पिछाण
उथळो जड़ां में है
लाध ई जावै
सोधण जे उतरै
ऊंडो खुद में कोई!