जती बड़ी हे दूर, लगती बड़ी हे बेर / अंगिका लोकगीत
प्रस्तुत गीत में बेटी-विदाई के समय माँ और बेटी का हृदय-विदारक वर्णन किया गया है। दुहने के समय जिस प्रकार गाय बछड़े के लिए हुँकरती है, उसी प्रकार माँ रसोई के समय बेटी के लिए हुँकरती रहती है। विदा होे पर रास्ता चलते बटोही से यह सुनकर कि तुम्हारी बेटी के रोने से गंगा बह गई और तुम्हारे दामाद के हँसने से चादर उड़ गई, किसी माँ की क्या हालत होगी? बेटी को अपने पिता के घर से बिछुड़ने का दुःख तो है ही, इसके अतिरिक्त यह सोचकर कि अब मेरे पति का घर कैसा होगा तथा वहाँ वालों का व्यवहार मेरे प्रति कैसा होगा, वह रो रही है, लेकिन दामाद बढ़िया दान-दहेज और अच्छी पत्नी पाने की खुशी में आनंदविभोर है। उसकी हँसी बेटी के लिए जले पर नमक छिड़कने से भी अधिक दुःखदायी प्रतीत होती होगी। इस गीत को सुनकर बिरले ही अपने आँसुओं को रोकने में समर्थ होंगे।
जती बड़ी हे दूर, लगती बड़ी हे बेर<ref>समय</ref>॥1॥
अँगने अँगने बुलै<ref>घूम रहा है</ref> छथि, हँसते जमाय।
धिआ हे समोधु<ref>सांत्वना दो; मनाओ</ref> सासु, मनचित लगाय॥2॥
गैया के<ref>कौन</ref> बान्हतौ<ref>बाँधेगा</ref> में, खूँटबा लगाय।
बछिया के लेल जायछै, भागल जमाय।
जैती बड़ी हे दूर, लगती बड़ी हे बेर॥3॥
गैया जे हुँकरै<ref>बछड़े के लिए व्याकुल होकर रँभाना</ref>, दुहैया<ref>दुहने के समय</ref> केरा हे बेर।
बेटी के माय हुँकरै, रसोइया केरा हे बेर॥4॥
बाट रे बटोहिया कि, तोहिं मोरा भाय।
यहि बाटे देखलैं में, धिया रे जमाय।
हे जैती बढ़ी हे दूर, लगती बड़ी हे बेर॥5॥
देखलौं में देखलौ, असोक तर<ref>नीचे</ref> हे ठाढ़।
धिया हे हँकन<ref>सिर धुन-धुनकर रोना</ref> करै, हँसै जमाय॥6॥
धिया के कनैते, गंगा हे बहि गेल।
जमैया के हँसते, चदरिया उड़ि हे गेल।
जैती बड़ी हे दूर, लगती बड़ी हे बेर॥7॥