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जत्ते चलै चलैने जा / कैलाश झा ‘किंकर’

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जत्ते चलै चलैने जा।
जे मेॉन आबोॅ कैने जा।।

केक्कर के छै सुनै वाला,
सब दोनो कान केॅ मुनैवाला,
देखै लेॅ केकरा के बैठल
सब दोनो आँख केॅ मुनैवाला।
हे गाँधी के तेसर बन्दर
हाथ मुँह पर धैने जा।

जात-पात के बात उछालोॅ,
या बालोॅ के खाल निकालोॅ,
धर्मवाद केॅ कट्टरता मेॅ
चाहो तेॅ तलवार निकालोॅ।
शान्त सरोवर के पानी मेॅ
सगरो जहर मिलैने जा।

धन-बल केॅ छोडोॅ गुमान नै,
मानोॅ तो बेदोॅ कुरान नै,
कमजोरोॅ के खूब सताबोॅ
मानवता सेॅ छै उठान नै।
की करते ई निम्मल लोगबा
एकरोॅ खेत चरैने जा।

धर्मवाद केॅ गिंजते रइहोॅ,
रक्त-पिपासु जीते रइहोॅ,
केकरा चिन्ता छै समाज मेॅ
नेता छेॅ तों नेते रइहों।
की करतै ई मूरख जनता
कुर्सी अपन बचैने जा।

तोंही छेॅ बडका विद्वान,
सौंसे छै ई मुर्खिस्तान,
यहाँ पेड़ जब कोनो नै छै
अंड़ी केॅ तो पेड़ महान।
तोरा के छै रोकै वाला
सगरो गाल बजैने जा।