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जदुबीर, केहु न जनेउआ दै छै हे / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जदुबीर, केहु न जनेउआ दै<ref>देता है</ref> छै हे।
जनेउआ देथिन<ref>देंगे</ref> कवन बाबा, उनकर<ref>उनके</ref> मड़बा अतर<ref>इत्र</ref> गमके हे॥1॥
जदुबीर, केहु न भीखि दै छै हे।
भीखि त देथिन कनियाय<ref>कनिया; दुलहन</ref> मामा, उनकर अँचरा मोतिया झलके हे॥2॥

जदुबीर, केहु न जनेउआ दै छै हे
जनेउआ देथिन कवन चाचा, उनकर मड़बा अतर गमके हे॥3॥
जदुबीर, केहु न भीखि दै छै हे।
भीखि देथिन कनियाय चाची हे, उनकर अँचरा अतर गमके हे॥4॥
जदुबीर, केहु न जनेउआ दै छै हे।
जनेउआ देथिन कवन भइया, उनकर अँगना अतर गमके हे॥5॥
जदुबीर, केहु न भखि दै छै हे।
भीखि देथिन कनियाय भौजो हे, उनकर अँचरा अतर गमक हे॥6॥

शब्दार्थ
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