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जद थे कर्तव्य सूं चूकग्या! / कृष्णा सिन्हा
Kavita Kosh से
एक हूक-सी उठै हिवड़ा में
जद थे कर्तव्य सूं चूकग्या!
जिका मां-बाप
दुख सूं थानंै कर्यो मिनख,
वां सूं ई थां रूठग्या
वै भूखा रह्या, वै रोता रह्या
पण थानैं आंच नीं आवा दी
जद थांनैं विदेस में भणवा भेज्या
वां की थाळी में नीं रोटी ही
वां खुद री चिंता नीं करी
थांरी खुसियां रै खातर
वै कड़ी धूप में पैदल चाल्या
थांकी उडाण भरण खातर
थे घणा बडा अफसर बणग्या
पण वांनैं क्यूं भूलग्या
अेक हूक-सी उठै हिवड़ा में
जद थे कर्तव्य सूं चूकग्या!
अजै ई बगत है आ सोचलो
घर पाछा जावो, बावड़ो थे
वां हाथां नैं थाम’र पाछा
जो बांच रैया है थांरा आखर
ईं धरती पर वै रूप भगवान रो
थे या कस्यान भूलग्या
इक हूक-सी उठै हिवड़ा में
जद थे कर्तव्य सूं चूकग्या!