भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जद देखूं / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

>
जद देखूं
धरती नै
इयां ई फंफेड़ीज्योड़ी देखूं

जद देखूं
आभै नै
इयां ई टेंटीज्योड़ो देखूं

अबै
ठौड-ठौड कठै कूकतो फिरूं-
आ धरती म्हारी मां !
औ आभो म्हारो बाप !!