भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जद बात बिना सरै कोनी भायला / सांवर दइया
Kavita Kosh से
जद बात बिना सरै कोनी भायला
पछै बात क्यूं करै कोनी भायला
म्हैं जाणू मन पांगळो हुवै इण सूं
म्हनै औ घी जरै कोनी भायला
आभै उडण री हूंस राखै जिका
पंख अडाणै धरै कोनी भायला
दीवै दांई जगण री तेवड़ लै
आंधी सूं बै डरै कोनी भायला
आ माटी चूंघावै जिकां नै दूध
जग हाथां बै मरै कोनी भायला