भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जद हरी करै / सांवर दइया
Kavita Kosh से
बूढै बैसाख
अर
बाळणजोगै जेठ री बाथा में
बळी-तपी
हरी हूवण री हूंस दाब्यां
सूती धरती
अंग-अंग भीजै
बा रीझै
मुळकै-गावै
जद हरी करै सावण !