मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
जनक भवन सँ चलली सीता दाइ, जननी रोदना पसार
आगा-आगा राम चलू पाछहि सीता दाइ, देवलोक फूल छिड़िआइ
कानथि सीता हंसथि रामचन्द्र, सखि सब रोदना पसार
आमा के कानबे गंगा बहि गेल, बाबा के कानबे हिलोर
सखी सभ कानथि गर धए सीताक, जोड़ी बिजोड़ी केने जाइ
घुरू हे सखी सभ घुरि घर जइऔ, आमा के कहबनि बुझाइ
कहबनि आमाकेँ पाथर भए बैसतीह, हमहुँ बैसब हिया हारि