भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जनगन मनभावन / अरुण हरलीवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जनगन मनभावन होलिया!

सुमन चमन के, छुअन पवन के,
गन्ह मँजर के, गीत भँवर के...
अउरो कोयल के बोलिया!

साथ सखी के, हाथ सखी के,
नइन सखी के, बइन सखी के...
बड़ी रसगर हँसी-ठिठोलिया!

नेह पिया के, देह पिया के,
गाँव पिया के, गेह पिया के...
सपना में पिया के डोलिया!

बइठ न हाथा धर हाथा पर,
बहुरंगा बादर माथा पर...
बरसे रे धरा पर रोलिया!