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जनतन्त्र / बालकृष्ण काबरा 'एतेश' / लैंग्स्टन ह्यूज़

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नहीं आएगा जनतन्त्र
आज, इस साल,
न ही कभी
समझौते और भय से।

मेरे पास है उतना ही अधिकार
जितना है दूसरे के पास
ताकि खड़ा हो सकूँ
अपने दो पैरों पर
और हो ज़मीन मेरी ख़ुद की।

मैं लोगों से यह सुनते हुए थक गया हूँ
कि चीज़ों को लेने दो अपना समय।
कल एक दूसरा दिन है।
मैं नहीं चाहता हूँ अपनी स्वतन्त्रता जब मैं मर जाऊँ।
मैं नहीं रह सकता हूँ जीवित कल की रोटी के भरोसे।

स्वतन्त्रता
एक शक्तिशाली बीज है
जो रोपा गया है
बहुत ज़रू‏री होने पर।

मैं भी रहता हूँ यहाँ।
मुझे चाहिए स्वतन्त्रता
ठीक तुम्हारी तरह।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’