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जनता को तू समझ रहा नादान, तू कितना नादान / डी. एम. मिश्र

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जनता को तू समझ रहा नादान,तू कितना नादान
लोकशक्ति का नहीं तुझे अनुमान तू कितना नादान

कागज़ के कुछ नोटों के अतिरिक्त क्या है तेरे पास
फिर भी समझ रहा ख़ुद को धनवान तू कितना नादान

तोड़ दिया लोगों का तूने ख़्वाब भोग रहा अभिशाप
बेच दिया तूने अपना ईमान तू कितना नादान

गाल बजाकर चला है बनने वीर अन्दर से भयभीत
बाघ दिखें है तुझको पाकिस्तान तू कितना नादान

कितने झूठ अभी बोलेगा यार डूब न जाये यान
छल करके तू बन बैठा कप्तान तू कितना नादान

जनता समझ रही है सारा खेल रख इसका भी ध्यान
पाँच साल की होती ये दूकान तू कितना नादान