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जनता तो बांदी बणगी, चोर रूखाळा होग्या / रामेश्वर गुप्ता

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जनता तो बांदी बणगी, चोर रूखाळा होग्या
लोक राज का मेरे देश म्हं, ढंग कुढ़ाळा होग्या
 
कैसी सेवा कैसे सेवक, राजनीति व्यापार होई
धोखे की यां लड़ैं लड़ाई, संसद आज बाजार होई
सत्य-अहिंसा ना रहगी, अब चालाकी हथियार होई
बिन सीढ़ी मंजिल ढूंढै, या कैसी पौध त्यार होई
गोड्डे तक कर्जा चढ़ग्या, यू ज्यान का घाळा होग्या
 
जो शीशे तोडैं, बस फूंकैं, वे मन्त्री बण कै बैठ गए
नूगरे माणस ईब देश म्हं, सन्तरी बण कै बैठ गए
हरेक दवा म्हं जहर भर्या धनवन्तरी बण कै बैठ गए
जनता के कुछ हाथ नहीं, जनतन्त्री बण कै बैठ गए
हल्दी मिल गई चूहे नै, पन्सारी का साळा होग्या
 
भीखू, भीखाराम बण्या, सै वक्त वक्त का फेर दिखे
कोठी, बंगले, दिन के दिन हों, नहीं लगा रे देर दिखे
काजू-पिस्ते खार्या सै, कदे मिलते ना थे बेर दिखे
कार, जीप, नौकर-चाकर, सैं कई एकड़ का घेर दिखे
पहन कै खद्दर बुगला बणग्या, भीतर तै काळा होग्या
 
आंख के अन्धे कान के बहरे, जनता रोती ना दीखैं
लूट पाट चोरी, डाका, सरे आम फिरौती ना दीखैं
बलात्कार गाळां के म्हं अडै़, बहणां ढोती ना दीखैं
भूखा पेट कमेरे का उन्हें, म्हारी पाट्टी धोती ना दीखैं
‘रामेश्वर‘ की बात सुणी, मेरै सहम उजाळा होग्या