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जनता / महेन्द्र भटनागर

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आतंक का शासन
हमेशा रह नहीं सकता;
क्योंकि जनता
कुंभकर्णी नींद सोती है नहीं !
क्योंकि जनता की
कभी भी मौत होती है नहीं !

प्रमाणों की ज़रूरत और —
यदि करनी तुम्हें महसूस
जनता के हृदय की साँस की धड़कन
किसी भी देश के इतिहास के पन्ने
पलट कर देख सकते हो !
नहीं तो आज
मेरा देश आकर घूम सकते हो !
जहाँ इंसान ने
काली निराशा की पुरानी लाश को
भू की अतल गहराइयों में गाड़ कर
रंगीन अभिनव आश के
विश्वास के पौधे लगाये हैं !
अँधेरे में हज़ारों दीप
जीवन के जलाये हैं !
जवानी से भरी नदियाँ
जहाँ पर मुक्त बहती हैं,
कि कल-कल राग में
युग का नया संदेश कहती हैं !

जहाँ इंसान
दुनिया को बदलने के लिए
बड़े उत्साह से संयुक्त होते हैं !
कड़े श्रम से
धरा पर ज़िन्दगी के बीज बोते हैं !