भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जनमानस जिस कमल पुष्प को/राणा प्रताप सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जनमानस जिस कमल पुष्प को
देवालय में चढ़ा रहा है
अपने जीवन से कितने ही
पाठ हमें वह पढ़ा रहा है

आज़ादी के प्रथम समर का
वीरों ने था बिगुल बजाया
सोयी जनता जाग पड़ी और
क्रांति का इक परचम लहराया
एक समय ऐसा आया जब
क्रांति शिखर को चूम रही थी
प्रतीक बन तब उसी क्रांति का
कमल, चपाती घूम रही थी
वही कमल बन राष्ट्र पुष्प अब
देश की शोभा बढ़ा रहा है

विपदाएं कितनी भी आएँ
शेष ना आशाएं राह जाएँ
क्षुधा, गरीबी, और लाचारी
कितने भी रोड़े अटकाएँ
कठिन परिश्रम, सम्यक चिंतन
आओ सम्बल इन्हें बनायएँ
हम अपनी मुठ्ठी ना भीचें
सीख सकें तो कमल से सीखें
जो ऋतुओं की मार झेलकर
कीचड में भी खड़ा रहा है