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जनवादी / महेन्द्र भटनागर

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अनुचित करेंगे नहीं,
अनुचित सहेंगे नहीं!

अधिकार-मद-मत्त
सत्ता-विशिष्टो !
तुम्हारी सफल धूर्तता
और चलने न देंगे।

परलोक
या
लोक-कल्याण के नाम पर
व्यक्ति को
और छलने न देंगे।

मानव
अनाचार-नरकाग्नि में
अब दहेंगे नहीं।
स्वैरवर्ती
निरंकुश
नये विश्व में
शेष
निश्चित रहेंगे नहीं।