जनादेश / संजय चतुर्वेद
चालीस प्रतिशत लोगों ने वोट नहीं डाला
इनमें अधिकांश चाहते तो वोट डालते
उन्हें लगा इससे क्या होगा
या उन्होंने इसके बारे में कुछ सोचा ही नहीं
साठ प्रतिशत लोगों की निर्वाचन कवायद से जो सांसद निकले
वे तेईस प्रतिशत के समर्थन से बने
सैंतीस प्रतिशत लोगों ने किसी और को वोट दिया
और जिसे जनादेश माना गया
चालीस प्रतिशत लोग उससे बाहर कहीं रहते थे
इस तरह जिन लोकनिरपेक्ष नुमाइन्दों की संसद बनी
सतहत्तर प्रतिशत लोग उनसे निरपेक्ष थे
पच्चीस प्रतिशत सांसद लेकर जो सबसे बड़ी पार्टी उभरी
उसने अन्य पार्टियों का
जो चुनाव में उसकी मुख़ालफ़त करती थीं
बाहर से समर्थन प्राप्त किया
और इसके लिए जनता से नहीं पूछा जा सका क्योंकि यह संभव नहीं था
सबसे बड़ी पार्टी का जिन पार्टियों ने समर्थन किया
उन्होंने यह स्पष्ट किया
कि उनका सबसे बड़ी पार्टी से कोई सैद्धान्तिक मेल नहीं है
लेकिन सरकार चलाने के लिए
वे सबसे बड़ी पार्टी को बाहर से चलाएँगी
इसके लिए जनता से नहीं पूछा जा सका क्योंकि यह संभव नहीं था
सबसे बड़ी पार्टी में जो सबसे काँइयाँ नेता था
उसे सबसे बड़ा ख़तरा लोगों से रहा
सो उसने प्रधान पद के लिए गुप्त मतदान का
सबसे ज़्यादा विरोध किया
इसके लिए भी जनता से नहीं पूछा जा सका क्योंकि यह संभव नहीं था
जिन्होंने व्यावहारिक तौर पर लोकतन्त्र की जड़ें कुरेदीं
उन्होंने सैद्धान्तिक तौर पर उसका समर्थन किया
और जिन्होंने सैद्धान्तिक तौर पर लोकतन्त्र की जड़ें कुरेदीं
उन्होंने व्यावहारिक तौर पर उसकी माँग में धरना दिया
फिर कुछ दार्शनिक दिक़्क़तें राजधानी में रहीं
जिन्हें लोकनिरपेक्ष शक्तियों ने साफ़ किया
बाहरी ताक़तों से सर्वसम्मत निर्वाचन
और सन्दिग्ध ताक़तों से गठन हुआ
सबसे बड़े पद पर
सबसे भयभीत आदमी बैठा
सबसे भयभीत आदमी ने सबसे भयभीत मन्त्रिमण्डल चुना
और इस तरह तेईस फ़ीसदी के नुमाइंदों से
ऐसी भयभीत सरकार निकली
जिसने एक मज़बूत लोकतन्त्र का बाहर से समर्थन किया ।
1995