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जनाब! ये आज की नई पीढ़ी है / प्रवीण कुमार अंशुमान

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जनाब! ये आज की नई पीढ़ी है ।
तोड़ दी जिसने ज़िन्दगी की हरेक सीढ़ी है ।।

माँ-बाप से दूर भागने की क़वायद है
सारी दुनियाँ से जिनको शिकायत है,
जो नए-नए फैशन में रहते हर रोज़ चूर हैं
खुद को पाते जो हर वक्त ही मजबूर हैं,
जिनको कुछ भी कोई सिखा नहीं सकता
कुछ भी ऐसा नहीं, जो कोई उन्हें बता सकता,
जिनको क़िताबों से कुछ भी मतलब नहीं
खाना पूर्ति करना ही जिनको लगता हो सही,
जो टीचर को क्लास के बाहर पहचानते नहीं
शिक्षा का असली मूल्य जो तनिक भी जानते नहीं ।

जनाब! ये आज की नई पीढ़ी है ।
तोड़ दी जिसने ज़िन्दगी की हरेक सीढ़ी है ।।

आज सारे अंग्रेज़ी के प्रभाव में हैं
अपनी ही संस्कृति के जो अभाव में हैं,
जो ‘योग’ से तो थे सदा ही अपरिचित
आज उसे ‘योगा’ कहकर, जो नहीं होते जरा भी सशंकित,
जिनके स्वागत का तरीक़ा बदल गया है
‘नमस्कार’ छोड़, ‘गुड-मॉर्निंग’ में तीर जिनका चल गया है,
जो अपनी ही संस्कृति को पिछड़ा समझते हैं
पश्चिम से आई हर एक चीज़ को अनमोल कहते हैं,
आज उतारू हैं जो मैकाले को सही सिद्ध करने में
भारतीय शक्ल में पैदा होकर, लगे हैं बस अंग्रेज़ बनने में ।

जनाब! ये आज की नई पीढ़ी है ।
तोड़ दी जिसने ज़िन्दगी की हरेक सीढ़ी है ।।

मोबाइल इनकी दुनियाँ का सबसे बड़ा गुरु है
उन्हें पता नहीं कि असली “गुरु” का अंत यहीं से शुरू है,
आँखें ख़राब कर लेना इन्हें लगता गवारा है
वर्चुअल दुनियाँ से खुद को जिन्होंने संवारा है,
खो गया है इनके जीवन से पुस्तकों का अर्थ
परीक्षा बाद जिनके लिए वे हो जाती हैं व्यर्थ,
आधा-अधूरा जिनकी ज़िन्दगी का रास्ता है
‘स्नेह’, ‘करुणा’, ‘सम्मान’ से जिनका नहीं कोई वास्ता है,
उनकी ज़िन्दगी आज एक ख़ाली कारतूस के समान है
जिसके अंदर से देखो, खो गयी पूरी की पूरी जान है ।

जनाब! ये आज की नई पीढ़ी है ।
तोड़ दी जिसने ज़िन्दगी की हरेक सीढ़ी है ।।

गौर से ये देखते नहीं अपने बढ़ते कदम
बहुत जल्द ही ये तोड़ देते हैं अपना दम,
आज सात साल का बच्चा भी इतना गुस्सा कर जाता है
‘आत्महत्या’ की धमकी, अपने माँ-बाप को दे डालता है,
आज क्लास में बच्चे का जरा भी नहीं इंटरेस्ट है
उसे दिखता बस सोसायटीज़ का ‘एन्युअल फेस्ट’ है,
कुछ इसी तरह से वो सदा आगे बढ़ता है
फ्रस्ट्रेशन आने पर बस दूसरों को कोसता है,
जब तक समझ पाता है वो ये सारी बात
ज़िन्दगी में उसके आ चुकी होती है घनघोर अंधेरी रात ।

जनाब! ये आज की नई पीढ़ी है ।
तोड़ दी जिसने ज़िन्दगी की हरेक सीढ़ी है ।।

अब तक हुई बस तुम्हारी ही बात
अब सुन लो जरा एक हमारी भी आज,
‘रियर-मिरर’ के बिना गाड़ी आगे बढ़ नहीं पाती
बिना ‘संस्कृति’ के तेल के पहाड़ चढ़ नहीं पाती,
जो संस्कार भारत की धरती में बसता है
पश्चिम से आया हर विद्वान भी उसका गुणगान करता है,
जिस रास्ते पर तुम चल रहे हो आज
उस पर तो हम नहीं कर सकते कभी नाज़,
अगर तुमने पीछे मुड़कर अब भी देखा नहीं
अफ़सोस! ज़िन्दगी तेरी कभी खुशहाल बन पाएगी नहीं ।

जनाब! ये आज की नई पीढ़ी है ।
तोड़ दी जिसने ज़िन्दगी की हरेक सीढ़ी है ।।