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जनाब शिहाब सरमदी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
Kavita Kosh से
मैं फर्शे-नज़र को पढ़ कर बहुत मुतआस्सिर हुआ। सब से ज़ियादा उस की इस खुसूसियत से कि उस के रचनाकार में खुलूसे-फ़िक्र और सलीक़ा-ए-बयान की ग़ैर-मामूली सलाहीयत है। उस की आत्मा घुटी हुई फज़ाओं के शिकंजों से आज़ाद है और सब से बड़ी बात ये है कि वो उर्दू ग़ज़ल का मिज़ाजदान है।