भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जनि करीं अधिका दुलार / विनय राय ‘बबुरंग’
Kavita Kosh से
जनि करी अधिका
अपना लइकन के दुलार
नाहीं त रोज आई
ओरहन दुआर
पिये लागी गांजा
पाउच-हिरोइन
जा के चट्टी पर
जिये क बनाइ्र
इहे कुल आधार
केहू क समान चोराई
सेतिहे में बेंच आई
पइसा खातिर जब ऊ
हो जाई लाचार
बनि जाई निरहुआ
जुआ खेली खूँटी में
बेंच देई आपन ऊ
घर-संसार
ओतने दुलार करीं
बस में रहो लइका आपन
पढ़-लिख जाई त
एक दिन बन जाई
घर के होनहार।।