तीन फ़रवरी
उदास सांझ
शीतल मौन
अंधियाते आकाश में
दूर बहुत दूर
वह तारा गिरा
मैंने खिड़की का
दूजा पट भी खोला
और टूटते टते तारे में
उलझ गया
गुमसुम …
अपने पूर्वकाल के गगन पर
जहां हर क्षण ने मुझे
एक नये तारे के
गिरने की सूचना दी
जहां केवल दु:ख-दर्द
रिसते घाव
दम-घुटती इच्छाएं
और
भय और लज्जा में
डूबा प्रेम
मैं रुआंसा हो गया
भयभीत हुआ
मेरे समक्ष
मेरे मित्र
चेहरों पर मुस्कान लिए
दे रहे हैं
दीप जलाकर मुझको बधाई
मैंने
दीपों की लौ में खोकर
कांपने हाथों में
चाय का प्याला लिया
और इसमें छब्बीस वर्षीय कडुवाहट मिलाकर
उसे घूंट-घूंट पी लिया
मेरे मित्रों एवं सम्बन्धियों ने
ताली बजाई
मेरे जन्मदिन पर।