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जन्मदिन / शंख घोष / सुलोचना वर्मा

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तुम्हारे जन्मदिन पर और क्या दूँगा इस वायदे के सिवा
कि फिर हमारी मुलाक़ात होगी कभी
होगी मुलाक़ात तुलसी चौरे पर, होगी मुलाक़ात बाँस के पुल पर
होगी मुलाक़ात सुपाड़ी वन के किनारे
हम घूमते फिरेंगे शहर में डामर की टूटी सड़कों पर
दहकते दोपहर में या अविश्वास की रात में
लेकिन हमें घेरे रहेंगी कितनी अदृश्य सुतनुका हवाएँ
उस तुलसी या पुल या सुपाड़ी की
हाथ उठाकर कहूँगा, यह रहा, ऐसा ही, सिर्फ़
दो-एक तकलीफ़ बाकी रह गईं आज भी
जब जाने का समय हो आए, आँखों की चाहनाओं से भिगो लूँगा आँख
सीने पर छू जाऊँगा उँगली का एक पंख
जैसे कि हमारे सामने कहीं भी और कोई अपघात नहीं
मृत्यु नहीं दिगन्त अवधि
तुम्हारे जन्मदिन पर और क्या दूँगा इस वायदे के सिवा कि
कल से हर रोज़ होगा मेरा जन्मदिन |

मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
लीजिए, अब मूल बंगला में यही कविता पढ़िए
            জন্মদিন

তোমার জন্মদিনে কী আর দেব এই কথাটুকু ছাড়া
আবার আমাদের দেখা হবে কখনো
দেখা হবে তুলসীতলায় দেখা হবে বাঁশের সাঁকোয়
দেখা হবে সুপুরি বনের কিনারে
আমরা ঘুরে বেড়াবো শহরের ভাঙা অ্যাসফল্টে অ্যাসফল্টে
গনগনে দুপুরে কিংবা অবিশ্বাসের রাতে
কিন্তু আমাদের ঘিরে থাকবে অদৃশ্য কত সুতনুকা হাওয়া
ওই তুলসী কিংবা সাঁকোর কিংবা সুপুরির
হাত তুলে নিয়ে বলব, এই তো, এইরকমই, শুধু
দু-একটা ব্যথা বাকি রয়ে গেল আজও
যাবার সময় হলে চোখের চাওয়ায় ভিজিয়ে নেবো চোখ
বুকের ওপর ছুঁয়ে যাবো আঙুলের একটি পালক
যেন আমাদের সামনে কোথাও কোনো অপঘাত নেই আর
মৃত্যু নেই দিগন্ত অবধি
তোমার জন্মদিনে কী আর দেবো শুধু এই কথাটুকু ছাড়া যে
কাল থেকে রোজই আমার জন্মদিন।

('दिनगुलि रातगुलि' नामक संग्रह में संकलित, कविता का मूल बांग्ला शीर्षक - बाउल)