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जन्म के बीमार ! तेरा क्या करेगी / प्रेम भारद्वाज

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जन्म के बीमार तेरा क्या करेगी
ये जरा मिकदार तेरा क्या करेगी

ऊंघ ले बेकार में घर बैठकर तू
वक्त की हुँकार तेरा क्या करेगी

तू कहाँ उसके मुकाबिल आ सकेगा
ये कलम तलवार तेरा क्या करेगी

तुझसे छूटा ही नहीं ढांचा पुराना
तब नई सरकार तेरा क्या करेगी

बात सारी यातना से जूझने की
झूठ की अख़बार तेरा क्या करेगी

खेत,डंगर,घर,सफर कुछ भी नहीं है
बयार या पतझार तेरा क्या करेगी

चमन से होकर कहाँ तुम गुज़रते हो
हो पतझड़् बहार तेरा क्या करेगी

है मौत से तू रोज़ होता रूबरू
ज़िन्दगी निस्सार तेरा क्या करेगी

नामुकम्मल छत न रोटी पेट भर
नवग्रहों जी मार तेरा क्या करेगी

जीत के ख़्वाबों से कोसों दूर है तो
हर कदम पर हार तेरा क्या करेगी

उमर भर पाला तुझे जब नफ़रतों ने
प्रेम की फटकार तेरा क्या करेगी