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जन्म लेती 'एक कविता' / मनोज चौहान

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बात कोई छू जाती है जब
ह्रदय तल की गहराइयों को
या कभी
पीड़ा और तकलीफ देते
क्रिया-कलाप
घटनाएँ व दृश्य
कर देते हैं बाध्य
भीतर के समंदर में
गोता लगा देने के लिए l

जेहन में बसाये
इन तमाम पहलुओं को
जीता है कवि
रात–दिन, हर पल
निज अनुभव के धरातल पर l

ताकि निकाले जा सकें बाहर
जागृत व प्रेरित करते
सीख देते
और रुग्ण मानसिकताओं के
अंतस को कचोटते
चहूँ ओर नाद करते
शब्दों के मोती l

करता है मंथन वह
प्रकृति, जीव, समाज
विश्व, देश व काल का
खंगालता है उधड़ते
और जड़ हो चुके रिश्तों को
टटोलता है बालमन को भी l

और जब
द्वंद करते विचारों का वेग
लाँघ जाता है
चरम सीमाओं को
तो उकेर देता है वह
उन्हें कागज पर l
जन्म लेती है
इस तरह एक कविता
और थामे हुए
मशाल क्रांति की
बन जाती है पथ प्रदर्शक
मानवता और समाज की l