भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जन-जनपद / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मागधी वधू - गठित कलेवर मागधी रंगिनि मांसल अंग
मुख प्रफुल्ल सुरभित अधर, भाग्यहिँ रसिक क संग।।15।।

भोजपुरी नागरी - कजरी धुनि कल कंठ मे काजर रजित नैन
भरल कलेवर भोजपुरि नागरि मैन क ऐन।।16।।

व्रजबाला - यमुना जल पिबितहुँ सतत श्यामक धरितहुँ ध्यान
गोरि - नारि व्रज - नारि पुनि राधा प्रेम प्रमान।।17।।

कन्नोज-मेरठ - दु्रपदा संयुक्ता भगिनि जत मेरठ कन्नोज
पुरुषायित समरहु स्मरहु उर भरि माधुरि-ओज।।18।।

देहली - भाषा भूषा वेश पट देश विदेश प्रभाव
तदपि देहलि क गेहिनि क अमिट छटा छवि भाव।।19।।

काशिका - कनक - वरनि धनि कनक - पट पहिरि काशिका नारि
गंगा - तट चटपट चललि युव - जन चित - पट-कारि।।20।।

उज्जयिनी - युग - युग उज्जयिनी जनी रूप - विजयिनी ख्यात
अलक सघन विनु घन हनथि दृग - विद्युत सम्पात।।21।।