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जन कविता / कन्हैया लाल सेठिया

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उगावै
प्रतिबद्धता रै
गमलां में
सबदां रा कैक्टस,

कोनी पूगै
तोड़‘र
पींदो
बां री जड़
पताल,

बिनां संवेदणा री नमी
लागज्या अदेवल
पोख सकै
मुगत माटी
बड़‘र पींपल !