जन समर्थित चेतना को रौंद डाला जाएगा
आपकी संवेदना को रौंद डाला जाएगा
जी हुज़ूरी करने वाले चल सकेंगे शान से
तर्क की संभावना को रौंद डाला जाएगा
हर बहस दौड़ेगी अब उन्माद के जूते पहन
हर सुकोमल भावना को रौंद डाला जाएगा
बाढ़ से पहले बनेंगे काग़ज़ों पर पुल नये
और ज़मीं पर योजना को रौंद डाला जाएगा
हर विरोधी स्वर पर बरसेंगी निरंकुश लाठियाँ
सत्ता की आलोचना को रौंद डाला जाएगा
अब उमड़ना भूल जाएगी कोई अंतर्व्यथा
भाव की उद्दीपना को रौंद डाला जाएगा
हक की खातिर जो लड़ेंगे बस वही रह जाएँगे
हर अहिंसक याचना को रौंद डाला जाएगा