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जफ़ाएँ बख़्श के मुझ को मेरी वफ़ा माँगें / खातिर ग़ज़नवी

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जफ़ाएँ बख़्श के मुझ को मेरी वफ़ा माँगें
वो मेरे क़त्ल का मुझ ही से ख़ूँ-बहा माँगें

ये दिल हमारे लिए जिस ने रत-जगे काटे
अब इस से बढ़ के कोई दोस्त तुझ से क्या माँगें

वही बुझाते हैं फूँकों से चाँद तारों को
के जिन की शब के उजालों की हम दुआ माँगें

फ़ज़ाएँ चुप हैं कुछ ऐसी के दर्द बोलता है
बदन के शोर में किस को पुकारें क्या माँगें

क़नाअतें हमें ले आईं ऐसी मंज़िल पर
के अब सिले की तमन्ना न हम जज़ा माँगें