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जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह / रियाज़ ख़ैराबादी
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जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह
खुलेंगी लाख ज़बानें मिरी ज़बाँ की तरह
ये किस की साया-ए-दीवार ने मुझे पीसा
ये कौन टूट पड़ा मुझ पे आसमाँ की तरह
रह-ए-हयात कटी इस तरह कि उठ उठ कर
मैं बैठ बैठ गया गर्द-ए-कारवाँ की तरह
शरीक-ए-दर्द तो क्या बाइस-ए-अज़ीयत हैं
वो लोग जिन से तअल्लुक़ था जिस्म ओ जाँ की तरह
मुझे शबाब ने मारा बला-ए-जाँ हो कर
बहार आई मिरे बाग़ में ख़िजाँ की तरह
तिरी उठान तरक़्क़ी करे क़यामत की
तिरा शबाब बढ़े उम्र-ए-जावेदाँ की तरह
‘रियाज़’ मौत है इस शर्त से हमें मंज़ूर
ज़मीं सताए न मरने पर आसमाँ की तरह