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जबकि दरिया हूँ इक नदी हूँ मैं / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
जबकि दरिया हूँ इक नदी हूँ मैं
प्यासा-प्यासा-सा लगा ही हूँ मैं
न तो पंडित, न मौलवी हूँ मैं
तुमसे कहता हूँµआदमी हूँ मैं
मैं डरूँ तुमसे किसलिए बोलो
मौत तुम हो तो जिन्दगी हूँ मैं
मुझको बरसों-दिनों में मत बाँटो
पूरी-की-पूरी इक सदी हूँ मै
मैं क्या बोलूँगा ये दुनिया कहती
इस अंधेरे की रोशनी हूँ मैं
नेकी सबके लिए ही की मैंने
आज सबके लिए बदी हूँ मैं
पेड़ ये इसलिए हरे अब तक
हाँ जड़ों की बची नमी हूँ मैं ।