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जबकि लोग किया करते हैं शंका ज्ञानी-ध्यानी पर / प्राण शर्मा
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जबकि लोग किया करते हैं शंका ज्ञानी-ध्यानी पर |
क्यों न बढ़ेगा रोष सभी में मूरख की अगवानी पर ||
कैसा था वो युग वो कैसी दुनिया थी, हैरान हूँ मैं |
जबकि रचे जाते थे किस्से केवल राजा-रानी पर ||
बालिग करता कोई गलती गुस्सा करना जायज़ था |
कैसा गुस्सा मेरे भाई बच्चे की नादानी पर ||
शुक्र मना जो तेरे दुख में आँसू बहाने लोग आए |
वरना हर कोई रोता है अपनी राम कहानी पर ||
मुँडेरों पर बैठे कौओ कौन सुनेगा तुम्हें यहाँ |
दुनियावाले तो मरते हैं कोयल की मृदु बानी पर ||
'प्राण' जरूरत थी पानी की जब धरती पर सूखा था|
उस पानी से क्या लेना जो पानी बरसा पानी पर||