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जबकि / मोहन सगोरिया
Kavita Kosh से
पँखुरी गुलाब की
मशाल बन गई
ज़माना जाने क्या-क्या
कह-समझ रहा था
जबकि नींद से जागी थी पंखुरी
और धूप से सामना हुआ।