भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जबतें सतगुरु शबद लखायो / संत जूड़ीराम
Kavita Kosh से
जबतें सतगुरु शबद लखायो।
छाड़ कुपंथ राह मन ही तें प्रेम पुनीत नाम गुन गायो।
जब कछु जान परी गति ऐसी मन सुकदुक को भाई गमायो।
मारग मुक्त पदारथ चीन्हों जुगन-जुगन को फंद छुड़ायो।
अचल अखंड अलग गति जाकी सो पद अब दरसायो।
जूड़ीराम सरन सतगुरु के बार-बार चरनन सिर नायो।