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जबले ते बच्चा लेखा बलहीन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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जब ले तें बच्चा लेखा बलहीन बाड़ें
तब ले तें हृदय का भीतरे रह।
अबहीं त
तनकी भर चोट लागी त गिर जइबे
तनकी भर धाह लागी त मर जइबे
जहाँ देह में तनकी भर धूरा लागल
कि छटपटा के
सउँसे देह मलीन कर लेबे।
जहिया तें प्रभु के
आग भरल अमृत पी लेबे
तहिया तोरा देह में
शक्ति के लहर उठे लागी।
तब तें ढीठे बाहर निकल पड़िहे
तब तें धूरो में लोटइबे त पवित्रे रहबे
बंधनों में बंहइबे त स्वतंत्रे रहबे।