भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जबसे किसी से दर्द का रिश्ता नहीं रहा / दरवेश भारती
Kavita Kosh से
जबसे किसी से दर्द का रिश्ता नहीं रहा
जीना हमारा तबसे ही जीना नहीं रहा
तेरे ख़यालो-ख़्वाब ही रहते हैं आस-पास
तनहाई में भी मैं कभी तनहा नहीं रहा
आँसू बहे हैं इतने किसी के फ़िराक़ में
आँखों में इक भी वस्ल का सपना नहीं रहा
दरपेश आ रहे हैं वो हालात आजकल
अपनों कोअपनों पर ही भरोसा नहीं रहा
नफ़रत का ज़ह्र फैला है, लेकिन किसी में आज
मिल-बैठ सोचने का भी जज़्बा नहीं रहा
दारोमदारे-ज़िन्दगी जिसपर था, वो भी तो
जैसा समझते थे उसे, वैसा नहीं रहा
ये नस्ले-नौ है इतनी मुहज़्ज़ब कि इसमें आज
'दरवेश' गुफ़्तगू का सलीक़ा नहीं रहा