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जबसे ग़म की हवा चली-सी है / भावना

जबसे ग़म की हवा चली-सी है
तबसे हर सिम्त खलबली-सी है

रोज़ लेती है एक शक्ल नयी
बात उनकी जो मखमली-सी है

मैं तो मीरा नहीं, मगर फिर भी
लोग कहते हैं बावली-सी है

है हवा धुंध में कहीं गुमसुम
मेरी आँखों में बेकली-सी है

मुस्कराहट है उनके चेहरे पर
या कोई खिल रही कली-सी है