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जबसे संजीदा पीर हुई / नमन दत्त

जब से संजीदा पीर हुई।
हर ग़ज़ल मेरी शमशीर हुई॥

ग़म की तर्ज़ें तुम कहते हो,
अपनी ख़ातिर जागीर हुई॥

ज़ख़्मों ज़ख़्मों सीना छलनी,
आँसू आँसू तक़दीर हुई॥

पानी आँखों में भर आया,
धुंधली हर इक तस्वीर हुई॥

आती जाती हर एक नफ़स,
दीवाने की ज़ंजीर हुई॥

हम आबला-पा काँटों पर चले,
तब ग़ज़लों में तासीर हुई॥

लम्हों की एक ख़ता 'साबिर'
कितने जन्मों की पीर हुई॥