भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जबाव बंद हैं / स्वाति मेलकानी
Kavita Kosh से
तैयार जवाब बंद हैं लिफाफों में
और
धूल भरी दरी के नीचे
दब गये हैं सवाल
इसी के ऊपर चादर बिछाकर
बैंठे हैं वे
जिनकी जवाबदेही बनती है।
चादर सफेद है
धुली
और सूखी
जैसे होते हैं
वे मस्तिष्क
जिन्हंे पाँलीहाउस में उगाया जाता है।
क्योंकि
असली सूरज से तपा
और खुली जमीन पर उगा
हर दिमाग
सीख ही जाता है
धूप में काला
और ठंड में लाल होना।
भर जाता है सुर्ख सवालों के
रंगीन बवंडर से
और कभी न कभी
चादर को उलटकर
दरी झाड़ देता है।