जब-जब घर आता मैं / धीरज श्रीवास्तव
जब-जब घर आता मैं अपने दिखता बहुत उदास!
चैखट करने लगती मेरी सुधियों से परिहास!
नीम निहारे मुझे एकटक
पूछे कई सवाल!
क्योंकर मेरी याद न आती
इतने इतने साल!
आये हो तो मत जाना अब तुमसे है अरदास!
जब-जब घर आता मैं अपने दिखता बहुत उदास!
देख मुझे बूढ़ी दीवारें
हो जाती हैं दंग!
राख दौड़ कर पुरखों की भी
लग जाती है अंग!
कुर्सी चलकर बाबू जी की आ जाती है पास!
जब-जब घर आता मैं अपने दिखता बहुत उदास!
अलमारी की सभी किताबें
करने लगतीं बात!
अम्मा की सब मीठी बातें
कह जाती है रात!
बाबा, दादी और बुआ का होता है आभास!
जब-जब घर आता मैं अपने दिखता बहुत उदास!
बारादरी रसोई आँगन
बतियाते सब खूब!
और बताते कैसे निकली
फर्श फोड़कर दूब!
बैठ रुँआसा कहे ओसारा यहीं करो अब वास!
जब-जब घर आता मैं अपने दिखता बहुत उदास!