भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब-जब दीया जराइले / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
Kavita Kosh से
जब-जब दीया जराइले
तब-तब बुत जल।
एह से, हे प्रभु,
हमरा जीवन-कुटी मेभें
तहरा अन्हारे में बइठे के पड़ी।।
हमरा जीवन-लत के जड़
सुख गइल बा
ओमें खाली कोंढ़ी लागेला।
फूल ना फूलाय।
एह से, हे प्रभु,
हमरा जीवन में हाजिर बा
तहरा खातिर वेदना के उपहार।
ना बा हमरा लगे पूजा के गौरव
ना बा हमरा लगे पुण्य के वैभव
कुछ नइखे हमरा लगे, हे प्रभु,
कुछ नइखे, कुछुओ नइखे।
तहार ई पुजारी दीन-हीन भेस मेभें
पड़ल बा तहाँ पड़ल बा,
लजा के पड़ल बा।
तहरा उत्सव में भाग लेवे खातिर
बोलाहटो ना आइल।
ना बंशी बाजल, ना घर सजाइल।
एही से, हे प्रभु,
टूटल-फूटल घर-दुआर से
रो-रो के हम तहरा के पुकर रहल बानी।