जब-जब पीड़ा मन में उमँगी तुमने मेरा स्वर छीन लिया मेरी नि:शब्द विवशता में झरता आँसू-कन बीन लिया। प्रतिभा दी थी जीवन-प्रसून से सौरभ-संचय करने की- क्यों सार निवेदन का मेरे कहने से पहले छीन लिया? मेरठ, 31 मार्च, 1941