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जब आगे बढ़ते जाएँगे / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
(ब्रज की लोकधुन पर आधारित)
अब आगे बढ़ते जाएँगे, मज़दूर-किसान हमारे
मज़दूर-किसान हमारे, आशा अरमान हमारे
अब आगे बढ़ते जाएँगे...
हाथों की हथकड़ी छूटी, पैरों की बेड़ी टूटी
मंज़िल सर करते जाएँगे, मज़दूर किसान हमारे
अब आगे बढ़ते जाएँगे...
दे दिया ओखली में सर अब कैसा मूसल का डर
सीने पर गोली खाएँगे, मज़दूर-किसान हमारे
अब आगे बढ़ते जाएँगे...
करके सारी तैयारी, चल पड़ा काफ़िला भारी
अब लाल ध्वजा फहराएँगे, मज़दूर -किसान हमारे
अब आगे बढ़ते जाएँगे...