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जब आयेगा मधुमास / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
कल ही तो संदेश मिला है आयेगा मधुमास
मैं अपने आँगन में बैठा चिन्ता से मरता हूँ
तरह-तरह की बात सोच कर मन-ही-मन डरता हूँ
कहीं टूट न जाए उसका सदियों का विश्वास ।
किस पोखर या झील किनारे बैठेगा वह आ कर
कहाँ मतायेगा महुए की महक लगाए छाती
कैसे कोयल के कण्ठों में गायेगा वह प्राती
किस अमराई में बैठे वह छेड़ेगा चैतावर ।
कहाँ मिलेंगे हारिल, सुग्गे, पपीहे उसको अब तो
और माधवीलता, कनेली के संग ही कचनार
कहाँ मिलेगा टेसू-गुलाबों का सगुनौती प्यार
जाने ये सब कहाँ गये, क्यों नहीं दिखाते अब तो।
कल ही तो संदेश मिला है, आयेगा मधुमास
कैसे होगा स्वागत उसका, क्या है मेरे पास ।