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जब आ ही गए हो यादों में / शशांक मिश्रा 'सफ़ीर'

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जब आ ही गयी हो यादों में तो,
कुछ यादें मेरी तुम लेती जाना।
ये कुछ सूनी शामें हैं, जिनसे अब तक मैं गुजरा हूँ।
लेती जाना तुम संग प्रिये।
मत देना यदि दीप इन्हें तो,
अँधेरे के सिरहाने में चुपके से रख देना।

जब आ ही गयी हो यादों में तो,
कुछ पाँती मेरी तुम लेती जाना।
मत पढ़ सको पूरी पाँती तो,
अधूरे सपनों के अधरचे गीत सा, आधा पढ़ कर रख देना।
पर इस पागल दिल के खातिर, ख़त मुझको भी लिख देना।

जब आ ही गयी हो यादों में तो,
ये एक गुलाब तुम लेती जाना।
न दे सको जगह बालो में तो,
देख इन्हें तुम मुस्का देना।

जब आ ही गयी हो यादो में तो
, कुछ अपना हाल बता देना।
यादों के दीप जले सदा, बाती और बढ़ा देना।