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जब एक दीपक जल जाता है / अशोक रावत
Kavita Kosh से
जब एक दीपक जल जाता है,
सोच में सूरज ढल जाता है.
खुश रहते हैं हम थोड़े में,
काम हमारा चल जाता है,
झुक कर चलने वाला जग में,
कैसा भी हो पल जाता है.
जिसमें होती है खुदगर्ज़ी,
कोई भी हो खल जाता है.
दिल से जब देता है कोई,
हर एक आशिष फल जाता है.
भर आती हैं उस पल आँखें,
जब कोई पल टल जाता है.
रह जाते है असली सिक्के,
खोटा सिक्का चल जाता है.
जल जाती है लेकिन इससे,
क्या रस्सी का बल जाता है.
जीना होता है जिसको भी,
एक साँचे में ढल जाता है.