जब औन्दि बसन्त बयार / सुरेश स्नेही
लगल्यूं मा फुलार, अर मनख्यं मा उलार,
डाल्यं मा मौल्यार, जब औन्दि बसन्त बयार।
उमैति दिन अर स्वाणु समौं,
गुनुगुनु घाम अर मयाळु मैनु मौं,
पिंगलि फ्योलिं लेकि औन्दि च पंचमि,
तब मोर संगाडु मा लगौन्दिन सब्बी जौ।
सार्यूं मा लय्या कि फैलिं बयार
घुघति चैखलि अर मल्यो कि डार
मकरैणि खिचड़ि अर पंचम्युं मिठुभात
बरसु पुराणि छन इ रीति रिवाज।
धरति तैं देखिक तब रौंस लगदि
मनकि बिपदा बि दूर भागदि
उकताट सी रौन्दु जिकुड़ि मा होणु
जब दूर धारू मा कखि म्योलि बासदि।
खुदेड़ बेटि-ब्वारि बि सास लग्यां राला
बसन्त एै जालि त मैति बुलाला
मैनाक अपड़ा मैत मा रैकि
ह्यून्द कु कल्यो लेकि सैसर जाला।
खरड़ा डालों पर बि पातगा ऐगिन
आरू-बेडु अर आम मा बौर ऐगिन
श्रृंगार करिं धरित देखदि रैगिन मेरि आॅखि
कळकळिन मेरी आंख्यू मा आंसू ऐगिन।