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जब कभी उनके निकट जाता हूँ मैं / कुमार नयन

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जब कभी उनके निकट जाता हूँ मैं
अपने मक़सद से भटक जाता हूँ मैं।

जानता हूँ तुम शजर कांटों का हो
फिर भी क्यों तुमसे लिपट जाता हूँ मैं।

वाक़िया कैसे सुनाऊँ हौलनाक
कहते कहते तो हटक जाता हूँ मैं।

मेरे बेटों-सा डपटते हैं वो जब
बेटियों-सा तब सटक जाता हूँ मैं।

खुल के हंस दूँ बोल दूँ गर मैं कभी
उनकी आंखों में खटक जाता हूँ मैं।

हार जाते हैं मिरे अल्फ़ाज़ तो
मोरचे पर मौन डट जाता हूँ मैं।

ज़िन्दगी का दर्द तेरा शुक्रिया
चोट खा-खाकर चमक जाता हूँ मैं।