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जब कभी उन के तवज्जो में कमी पाई गई / साहिर लुधियानवी
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जब कभी उन के तवज्जो में कमी पाई गई
अज़ सर-ए-नव-ए-दास्तान-ए-शौक़ दोहराई गई
बिक चुके जब तेरे लब फिर तुझ को क्या शिकवा अगर
जि़न्दगानी बादा-ओ-साग़र से बहलाई गई
ऐ ग़म-ए-दुनिया तुझे क्या इल्म तेरे वास्ते
किन बहानों से तिबयत राह पर लाई गई
हम करें तकर्-ए-वफ़ा अच्छा चलो यूं ही सही
और अगर तकर्-ए-वफ़ा से भी न रुस्वाई गई
कैसे कैसे चश्म-ओ-आरिज़ गदर्-ए-ग़म से बुझ गए
कैसे कैसे पैकरों की शान-ए-ज़ेबाई गई
दिल की धड़कन में तवज्ज़ुन आ चला है ख़ैर हो
मेरी नज़रे बझ गयीं या तेरी रानाई गई
उन का ग़म उन का तस्व्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गयीं आई गई